शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

मेरी आँखों में ...


ये कांटों सा चुभता मेरी आँखों में कौन है

है कौन जिसके लिये मेरे जज्बात मौन है

अहसास-ए-समन्दर में कौन कंकड़ गिरा गया

अरमानों से खेलता ये अपना सा कौन है


अश्क माना कि आँखों में नमी लाती है

पर आग बुझती नहीं और जला जाती है

सोचते हैं कि उन्हें सदियों से भूल बैठे है

कोयल की उठती हूक याद दिला जाती है


तबाह हो के भी हमने उसी का नाम लिया

अपने ही हाथों अपना गिरेबां थाम लिया

ना कोई आह हो और ना कोई शिकवा करें

यही सोच के हमने रूसवाई से काम लिया

                                        ...आशा गुप्ता 'आशु'