'आशु' आशा गुप्ता

भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।

सोमवार, 13 जनवरी 2014

तुम्हारी श्वेताम्बरा..

तुम्हारी श्वेताम्बरा..

प्रस्तुतकर्ता ashugasha24 पर 3:33 am 2 टिप्‍पणियां:
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बुधवार, 8 जनवरी 2014

जाने तुम कब आओगे.....

जाने तुम कब आओगे.....


प्रस्तुतकर्ता ashugasha24 पर 4:51 am 2 टिप्‍पणियां:
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