जब बुलाया था तुमने
अनजाने ही जैसे कोई
रिश्ता निभाया था तुमने
कप में उड़ेली थी जब
सस्नेह भावों की धार
मन अभिभूत हुआ पा के
भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।