मेरी आँखों से कोई आ के सपने चुरा रहा है
ये कौन है जो मुझको छुप छुप सता रहा है
भींचा है मुट्ठियों में दिल औ जिगर को मैंने
रेत की तरह हौले हौले कोई इसको छुड़ा रहा है
सहमा हुआ था ये दिल गम की आँधियों से
उम्मीद का सौदाई एक दिया सा जला रहा है
मेरी नींद भी गई थी, मेरा चैन रूहपोश था
ये कौन है जो बादलों का तकिया लगा रहा है
मेरी ख्वाहिशों के मुकद्दर, मेरी राह के सितारे
मेरी रूह में रहकर, वो हर पल मुस्कुरा रहा है
...आशा गुप्ता 'आशु'