'आशु' आशा गुप्ता

भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

जाने तुम कब आओगे.....

जाने तुम कब आओगे.....


प्रस्तुतकर्ता ashugasha24 पर 4:51 am
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2 टिप्‍पणियां:

ashugasha24 ने कहा…

big smile 4 u

13 जनवरी 2014 को 2:33 am बजे
Unknown ने कहा…

Very nice

17 मार्च 2017 को 10:26 pm बजे

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