'आशु' आशा गुप्ता

भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।

शनिवार, 1 अगस्त 2015

तुम्हारे लिए


प्रस्तुतकर्ता ashugasha24 पर 12:20 am
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1 टिप्पणी:

varun mishra ने कहा…

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1 अगस्त 2015 को 1:05 am बजे

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