भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।
2 टिप्पणियां:
जिस तरह से उर्दू के लफ्जों का इस्तेमाल किया है वो वाकई सराहनीय प्रयास है !
बहुत बहुत धन्यवाद आपका Monu जी
एक टिप्पणी भेजें