'आशु' आशा गुप्ता

भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।

मंगलवार, 12 मई 2020

न हंसने की चाह


प्रस्तुतकर्ता ashugasha24 पर 2:18 am
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1 टिप्पणी:

https://www.kavibhyankar.blogspot.com ने कहा…

बहुत सुन्दर ब्लॉग है ऐक से ऐक सुन्दर रचनाएँ है

6 अक्टूबर 2023 को 12:30 am बजे

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