भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।
शनिवार, 1 अगस्त 2015
शनिवार, 19 अप्रैल 2014
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014
मंगलवार, 11 मार्च 2014
सोमवार, 13 जनवरी 2014
बुधवार, 8 जनवरी 2014
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