मन क्षोभ से भरा है..... कुछ घटनाएं कई सवाल खड़े कर देती हैं...और जबाव कहीं नहीं होता, किसी के पास नहीं होता.....
"मत चीखो, कोई सुन लेगा
मन का हर भेद गुन लेगा"
"देखो लोग क्या कहेंगे
तुम पर ही तो हसेंगे"
"अपनी आन बचा नहीं पाई
फिर भी न तुझे शर्म आई"
"चीखोगी, चिल्लाओगी
ऐसे में क्या पा जायोगी"
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यही कह कह के अपने
जीवन दुश्वार किया सबने
क्या लड़की होना दोष है
या सुन्दर दिखने में खोट है
जिस्म ही एक मकसद है
इस दुनिया की कैसी हद है
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क्या हो गया मर्दों की बुद्धि को
मन की अंदर की शुद्धि को
आंखों का शर्म कहां गया
रिश्तों का मर्म कहां गया
अपने घर के आदर्शवादी
बाहर बन जाते हैं भोगी
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अपनी बहनों से प्यार करें
दूजे की बहनों का संहार करें
अपनी बेटी लगती प्यारी
दूजे की बेटी पर नज़र बुरी
लानत है ऐसे दरिन्दों पर
लानत है ऐसे जिन्दों पर
.....आशा गुप्ता 'आशु'
4 टिप्पणियां:
नारी की वेदना का एक मर्मस्पर्शी एहसास... सचमुच दिल भर आया.. बहुत सार्थक रचना आशु...
आइना है आपकी रचना ।।
भाई जी मन बहुत उचाट था इस घटना से... हम और कर भी क्या सकते हैं....कभी कभी अपनी मजबूरियों पर बड़ा गुस्सा आता है....जो भी हुआ ठीक नहीं था...और अब जो हो रहा है वो भी ठीक नहीं है....समर्थकों को परेशान करने का क्या मतलब..
दीपक जी.... एक रचनाकार इससे ज्यादा कर भी क्या सकता है.......शुक्रिया सराहने के लिये..
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