'आशु' आशा गुप्ता

भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।

सोमवार, 19 अगस्त 2013

सावन सावन... 01/08/2015


प्रस्तुतकर्ता ashugasha24 पर 5:15 am
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1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Free ebook publisher india,Thanks for sharing such a informative post.

1 अगस्त 2015 को 1:06 am बजे

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