भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।
हहहहहहहहहहहह....ये बात सही है कि तारीफ इंसान का दिमाग खराब कर देती है.....और ये भी सही है कि मेरे दिमाग में इतनी जगह ही नहीं की तारीफ ठहर सके।....बहुत शुक्रिया
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर प्रयास ..........बस ज्यादा तारीफ़ नहीं करूंगा वरना फूल कर कुप्पा हो जाओगे आप !!
हहहहहहहहहहहह....ये बात सही है कि तारीफ इंसान का दिमाग खराब कर देती है.....और ये भी सही है कि मेरे दिमाग में इतनी जगह ही नहीं की तारीफ ठहर सके।....बहुत शुक्रिया
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