भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।
शुक्रवार, 9 अगस्त 2019
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016
बुधवार, 14 अक्तूबर 2015
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बुधवार, 12 अगस्त 2015
मंगलवार, 11 अगस्त 2015
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