शनिवार, 14 जुलाई 2012

अश्क मेरे

अपने हाथो में चंद गर्म अश्को को लिए 
मुन्तजिर हैं मेरी आँखे कब से तेरे लिए

उसी वादी में तन्हा आज भी हम बैठे हैं
उठ गए थे तुम जहाँ से, जाने के लिए

जिस अश्को को मोती कहा था तुमने
आज निकले धूल में मिल जाने के लिए

और कब तलक ये हथेली में रह पाएंगे
धूप बैठी है देर से इनको जलाने के लिए

कौन समझेगा ये तेरे अहसास के मोती हैं
ये फकत अश्क है इस बेदर्द ज़माने के लिए

............................आशा गुप्ता 'आशु'

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