भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।
1 टिप्पणी:
कुछ तो है कि जो आपकी कलम से निकले अशआर अपने आप की हकीकत सी लगती है शायद प्यार में लोग ऐसे ही हालातो से गुजरते है !!
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