शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

मेरी आँखों में ...


ये कांटों सा चुभता मेरी आँखों में कौन है

है कौन जिसके लिये मेरे जज्बात मौन है

अहसास-ए-समन्दर में कौन कंकड़ गिरा गया

अरमानों से खेलता ये अपना सा कौन है


अश्क माना कि आँखों में नमी लाती है

पर आग बुझती नहीं और जला जाती है

सोचते हैं कि उन्हें सदियों से भूल बैठे है

कोयल की उठती हूक याद दिला जाती है


तबाह हो के भी हमने उसी का नाम लिया

अपने ही हाथों अपना गिरेबां थाम लिया

ना कोई आह हो और ना कोई शिकवा करें

यही सोच के हमने रूसवाई से काम लिया

                                        ...आशा गुप्ता 'आशु' 

शनिवार, 14 जुलाई 2012

वो नहीं मेरे संग


वो नहीं मेरे संग तो कोई बंदानवाज़ नहीं 

ना रहे तख्तो-ताज, अब वो सरताज नहीं

पुकारते भी हम तो किसे इस सुने जहाँ में 

अब ना पंख, ना आसमा, वो परवाज़ नहीं.......आशु 

अब ना नूर है

अब ना नूर है, ना रंग छलकते है कहीं से
जीस्त हो गई बेनूर बस एक तेरी कमी से 

मुद्दत से सोचते थे हम तो बंज़र से हो गए
सब्ज-सा हुआ है दिले बाग़ दर्द की नमी से 

परवाज़ से बेज़ार परिंदा, धरती से आ लगा
लगते नहीं थे पाँव जिसके कभी इस ज़मी से

जो मेरे फ़साने का अरसे से सिरमौर रहा है
अहसास-ओ-रस्म का तकाजा करते वो हमी से ...... 'आशु'

अश्क मेरे

अपने हाथो में चंद गर्म अश्को को लिए 
मुन्तजिर हैं मेरी आँखे कब से तेरे लिए

उसी वादी में तन्हा आज भी हम बैठे हैं
उठ गए थे तुम जहाँ से, जाने के लिए

जिस अश्को को मोती कहा था तुमने
आज निकले धूल में मिल जाने के लिए

और कब तलक ये हथेली में रह पाएंगे
धूप बैठी है देर से इनको जलाने के लिए

कौन समझेगा ये तेरे अहसास के मोती हैं
ये फकत अश्क है इस बेदर्द ज़माने के लिए

............................आशा गुप्ता 'आशु'

बुधवार, 20 जून 2012


अभी मैंने संभलना सीखा नहीं है
अभी मेरे पाँव डगमगाते बहुत हैं 
ख्वाहिशो का शोर थमा ही नहीं है
अभी भी दर्द लड़खड़ाते बहुत हैं
अभी दिल की हसरत भी क़ैद में है
आँख में अश्क जगमगाते बहुत हैं
मेरी दुनिया का सूरज बादलों में है
अभी भी अँधेरे हमें सताते बहुत हैं
अभी भी जज्बात का हूँ मै खिलौना 
अभी भी ख्वाब कसमसाते बहुत हैं ...........आशु 7/5/12