भावों के गर्भ से निकलती मेरी रचनाएं जब मुझसे बात करती हैं, तब वो एक कविता, ग़ज़ल या शायरी बन जाती है। कभी कुछ सोच के नहीं लिखा, जो लिखा दिल से, दिल के लिए, दिल ने लिखा।......लिखना सहज नदी की तरह मेरे भीतर सदा प्रवाहित होती रहती है.....शब्द के छींटे काग़जों पर पड़ते हैं बस इतना ही।
मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013
सोमवार, 19 अगस्त 2013
रविवार, 11 अगस्त 2013
प्यास
अधूरी ज़िन्दगी हो जिसकी, अधूरी प्यास होती है
उजालों के लिए, तड़पने को हर एक सांस होती है
कई सपने नित आँखों में मेरे करवट बदलते हैं
कई टूटे हुए किनारों में, मिलन की आस होती है
निभाया भी जाता है, बिना मिल के भी रिश्तों को
अहसासों में लिपटी,...... ये निस्बत खास होती है
कदम दर कदम दो साथ....... यही बहुत है साहिब
तेरे साथ का दिन गुलज़ार, रात मधुमास होती है
सुकून मिल जाए तो ये जीवन कोहिनूर हो जाए
तरसती प्यार को ज़िन्दगी, गले का फांस होती है......आशा गुप्ता आशु
गुरुवार, 24 जनवरी 2013
प्रिय ...........
प्यार के शाब्दिक अर्थ में
तुम मुझे नहीं पाओगे
विश्वास में पलने वाली मैं,
कब तक आजमाओगे
हंसने-रोने और पाने-खोने से
मैं ऊपर आ गई हूँ
इन सबके सितम से अब
दिल को ना दुखा पाओगे
जिस चिराग से रौशन है
दिल का दरबार मेरा
उम्मीद के इस शम्मा को
हरगिज ना बुझा पाओगे
भले ही याद नहीं तुमको
अपनी ही नूरानी बातें
पर रूह की आवाज़ को
तुम कैसे दबा पाओगे
लौटती हुई सदाएँ मेरी
मेरा एतबार बढ़ा देती हैं
मेरे इस विस्तार को
तुम कैसे घटा पाओगे
फूल-कांटे, शोला औ शबनम में
हर जगह तुमको देखा है
एहसास का समन्दर है यहाँ
कितनी बूंदों को गिन पाओगे......आशा गुप्ता 'आशु'
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
कौन है ...
मेरी आँखों से कोई आ के सपने चुरा रहा है
ये कौन है जो मुझको छुप छुप सता रहा है
भींचा है मुट्ठियों में दिल औ जिगर को मैंने
रेत की तरह हौले हौले कोई इसको छुड़ा रहा है
सहमा हुआ था ये दिल गम की आँधियों से
उम्मीद का सौदाई एक दिया सा जला रहा है
मेरी नींद भी गई थी, मेरा चैन रूहपोश था
ये कौन है जो बादलों का तकिया लगा रहा है
मेरी ख्वाहिशों के मुकद्दर, मेरी राह के सितारे
मेरी रूह में रहकर, वो हर पल मुस्कुरा रहा है
...आशा गुप्ता 'आशु'
सोमवार, 17 दिसंबर 2012
बरसों सा बीता है पल, जब आप नहीं थे
उम्मीद का ढल गया कल, जब आप नहीं थे
ना फूल में थी खुश्बू, ना नरमी हवाओं में
उड़ चला हर स्वप्न दल, जब आप नहीं थे
ना प्रीत की स्याही, ना शब्दों का कारवां था
खामोश हो गई ग़जल, जब आप नहीं थे
हम भी थे बेज़ार कुछ ज़माने के करम से
ज़बीं पे पड़ गया बल, जब आप नहीं थे
हर ओर रोशनी थी, और बेनूर था जहां
हर नज़ारा गया छल, जब आप नहीं थे.........आशा गुप्ता 'आशु'
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