गुरुवार, 24 जनवरी 2013



प्रिय ...........
प्यार के शाब्दिक अर्थ में
तुम मुझे नहीं पाओगे
विश्वास में पलने वाली मैं,
कब तक आजमाओगे

हंसने-रोने और पाने-खोने से
मैं ऊपर आ गई हूँ
इन सबके सितम से अब
दिल को ना दुखा पाओगे

जिस चिराग से रौशन है 
दिल का दरबार मेरा
उम्मीद के इस शम्मा को
हरगिज ना बुझा पाओगे

भले ही याद नहीं तुमको
अपनी ही नूरानी बातें
पर रूह की आवाज़ को
तुम कैसे दबा पाओगे

लौटती हुई सदाएँ मेरी
मेरा एतबार बढ़ा देती हैं
मेरे इस विस्तार को 
तुम कैसे घटा पाओगे

फूल-कांटे, शोला औ शबनम में
हर जगह तुमको देखा है
एहसास का समन्दर है यहाँ
कितनी बूंदों को गिन पाओगे......आशा गुप्ता 'आशु' 

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

कौन है ...



मेरी आँखों से कोई के सपने चुरा रहा है
ये कौन है जो मुझको छुप छुप सता रहा है

भींचा है मुट्ठियों में दिल जिगर को मैंने
रेत की तरह हौले हौले कोई इसको छुड़ा रहा है

सहमा हुआ था ये दिल गम की आँधियों से
उम्मीद का सौदाई एक दिया सा जला रहा है

मेरी नींद भी गई थी, मेरा चैन रूहपोश था
ये कौन है जो बादलों का तकिया लगा रहा है

मेरी ख्वाहिशों के मुकद्दर, मेरी राह के सितारे
मेरी रूह में रहकर, वो हर पल मुस्कुरा रहा है

                              ...आशा गुप्ता 'आशु'

सोमवार, 17 दिसंबर 2012


बरसों सा बीता है पल, जब आप नहीं थे
उम्मीद का ढल गया कल, जब आप नहीं थे

ना फूल में थी खुश्बू, ना नरमी हवाओं में
उड़ चला हर स्वप्न दल, जब आप नहीं थे

ना प्रीत की स्याही, ना शब्दों का कारवां था
खामोश हो गई ग़जल, जब आप नहीं थे

हम भी थे बेज़ार कुछ ज़माने के करम से
ज़बीं पे पड़ गया बल, जब आप नहीं थे

हर ओर रोशनी थी, और बेनूर था जहां
हर नज़ारा गया छल, जब आप नहीं थे.........आशा गुप्ता 'आशु'


मन क्षोभ से भरा है..... कुछ घटनाएं कई सवाल खड़े कर देती हैं...और जबाव कहीं नहीं होता, किसी के पास नहीं होता.....

"मत चीखो, कोई सुन लेगा
मन का हर भेद गुन लेगा"
"देखो लोग क्या कहेंगे
तुम पर ही तो हसेंगे"
"अपनी आन बचा नहीं पाई
फिर भी न तुझे शर्म आई"
"चीखोगी, चिल्लाओगी
ऐसे में क्या पा जायोगी"
........................
यही कह कह के अपने
जीवन दुश्वार किया सबने
क्या लड़की होना दोष है
या सुन्दर दिखने में खोट है
जिस्म ही एक मकसद है
इस दुनिया की कैसी हद है
..........................
क्या हो गया मर्दों की बुद्धि को
मन की अंदर की शुद्धि को
आंखों का शर्म कहां गया
रिश्तों का मर्म कहां गया
अपने घर के आदर्शवादी
बाहर बन जाते हैं भोगी
............................
अपनी बहनों से प्यार करें
दूजे की बहनों का संहार करें
अपनी बेटी लगती प्यारी
दूजे की बेटी पर नज़र बुरी
लानत है ऐसे दरिन्दों पर
लानत है ऐसे जिन्दों पर
.....आशा गुप्ता 'आशु'

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

मेरी आँखों में ...


ये कांटों सा चुभता मेरी आँखों में कौन है

है कौन जिसके लिये मेरे जज्बात मौन है

अहसास-ए-समन्दर में कौन कंकड़ गिरा गया

अरमानों से खेलता ये अपना सा कौन है


अश्क माना कि आँखों में नमी लाती है

पर आग बुझती नहीं और जला जाती है

सोचते हैं कि उन्हें सदियों से भूल बैठे है

कोयल की उठती हूक याद दिला जाती है


तबाह हो के भी हमने उसी का नाम लिया

अपने ही हाथों अपना गिरेबां थाम लिया

ना कोई आह हो और ना कोई शिकवा करें

यही सोच के हमने रूसवाई से काम लिया

                                        ...आशा गुप्ता 'आशु' 

शनिवार, 14 जुलाई 2012

वो नहीं मेरे संग


वो नहीं मेरे संग तो कोई बंदानवाज़ नहीं 

ना रहे तख्तो-ताज, अब वो सरताज नहीं

पुकारते भी हम तो किसे इस सुने जहाँ में 

अब ना पंख, ना आसमा, वो परवाज़ नहीं.......आशु 

अब ना नूर है

अब ना नूर है, ना रंग छलकते है कहीं से
जीस्त हो गई बेनूर बस एक तेरी कमी से 

मुद्दत से सोचते थे हम तो बंज़र से हो गए
सब्ज-सा हुआ है दिले बाग़ दर्द की नमी से 

परवाज़ से बेज़ार परिंदा, धरती से आ लगा
लगते नहीं थे पाँव जिसके कभी इस ज़मी से

जो मेरे फ़साने का अरसे से सिरमौर रहा है
अहसास-ओ-रस्म का तकाजा करते वो हमी से ...... 'आशु'